होली
होली
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उड़ा उड़ा रे अबीर गुलाल
सतरंगी हुआ रे आसमान
लाल हरे नीले पीले
फ़िज़ा में बिखरे रंग चटकीले
फागुन ऋतु आयी
और पलाश के फूल मुस्कुराये
रंग बन, चेहरों पर कितने खिलखिलाए
प्रफुल्लित हुई है आज धरा भी
नवयौवना का रूप पाकर
प्रकृति का कण कण उल्लसित हुआ है
नव ऊर्जा नवचेतना का गीत गाकर
बरस रही है चहूं ओर
खुशियों की फुहार
ढोल ताशों के संग आया
होली का त्यौहार
भुला कर सारे गीले शिकवे
आज तन मन प्रेम रंग से रंग ले
उतर जाएगा गुलाल रंग
पर प्रेम रंग कभी न उतरे।