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Dippriya Mishra

Abstract Inspirational

4.5  

Dippriya Mishra

Abstract Inspirational

नारी

नारी

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वैरागी शंकर में जगाती

मैं ही प्रेम कीआसक्ति हूँ।

अनुरागी तुलसी के हृदय में भरती

मैं ही राम की भक्ति हूँ।


मैं तारिणी भागीरथी की धार

जीवन नैया की मैं पतवार हूँ।

नव पल्लव, पुष्पित बगिया का

मैं ही तो सूत्रधार हूँ.......


मैं सत्य, शिव, सुंदर,

सृष्टि मैं ही..... शक्ति हूँ।

मैं कोमलांगी, भाव मधुर

मोह माया मैं ही, विरक्ति हूँ।


अलंकृत मत करो

अनुचित विशेषण से, मेरे अस्तित्व को,

मैं अबला नही........

मैं हर युग में रही सबल....पर,

तेरे मोहपाश में छली गई हूँ।


मेरे समर्पण को

तुम अधिकार समझते हो।

मैं कोई वस्तु थी क्या ?

तुम जो जुए में हार गए थे।

अंतर्यामी राम से पूछो, अग्नि परीक्षा ले,

क्यों जीते जी मुझको मार गए थे ?


मेरी चाह रही, तुम जीतो हरदम

तुमने कैसे सोच लिया, मैं हार गई हूँ?

है हौसला मुझ में कि सारा जहान बदल दूँ।

ठान लिया, तो धरती क्या मैं आसमान बदल दूँ!

लोकतंत्र का मैं भी हिस्सा हूँ,

चाह लिया तो संविधान बदल दूँ।


दुःख के थपेड़े लाख मिले हैं, 

लेकिन बहना

स्नेह के उद्गम जैसा, अब भी जारी हूँ।

अनुसुइयामैं ही सावित्री,

यमराज पर भारी हूँ।

ईश्वर की अनुपम कृति हूँ। 

रखी जिंदा मैं ही प्रीत की रीति हूँ।


सुनो नहीं माँगती .....

मैं प्रतिदान प्रेम का,

मैं सम्मान की अधिकारी हूँ।

मैं कोमल फूल तो हूँ ....

हृदय रखी चिंगारी हूँ....

मैं भारत की नारी हूँ।


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