कोरोना
कोरोना
ना पासपोर्ट ना वीसा
घुस गया बे रोक टोक
जिस तरफ उसने देखा
किसी ने उससे ना पूछा
किस देश से आए हो ?
और कहां अब है जाना ?
ना मां की ममता
ना बच्चो की मासूमियत
ना दिल उसका पसीजा
ना बड़ों को छोड़ा
ना गरीबों को समझा
कोई पनाह नहीं छोड़ी
जहां चाहा वहां पसरा
ना मजहब का लिहाज
मंदिरों की कतारों में
बेशर्मी से खड़ा था
मस्जिदों में नमाज़ी भी
चुपके से बना था
इस अधर्मी को
ना पंडितों ने रोका
ना मौलवीयो ने टोका
ले लिया आगोश में अपने
जो पास से भी इसके गुजरा
थोड़े से समय में ही
किसी को न बख्शा
इसी मिट्टी से जन्मा
इसी मिट्टी के बन्दों को
इसी मिट्टी में रोंधा
ना था कोई उसका अपना
ना वह था किसी का
फिर क्या बदगुमानी है
क्या इसको बंदों से दुश्मनी है
नुक्ते, से छोटी हैसियत है इसकी
पर मिजाज़ है आसमान पर
कोई उसे नहीं है समझा
डॉक्टर्स या हकीमों के पास भी
नहीं है इसके इलाज का नुस्खा
रब की इजाज़त बिना
इंसानो के परिवारों को
बेतहाशा इसने उजाड़ा
फूल सी सूरत होते हुए भी
सीरत और हरकत है कातिलाना
हैरत है बुद्धिजीवियों पर
जो नाम दिया है इसे " कोरोना "।