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Yogeshwar Dayal Mathur

Abstract Others

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Yogeshwar Dayal Mathur

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आधे अधूरे

आधे अधूरे

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इत्तफाक न था उन्हें हमारी फ़ितरत से 

काश उनकी निगाहें हमारे जिगर तक उतर जाती 


परेशान थे हम अपनी जिंदगी से 

पर अहसास न था 

जिंदगी भी परेशान थी हमारी फितरत से 


अहंकार से झुलसे लोगों के लिए कोई मरहम नहीं होता 

गिरकर लगी चोट ही है इलाज उनका 


हंसने से हमें कभी परहेज़ न था 

हंसता देखने वाला भी तो वहां कोई न था 


जिस्म पर लगी चोट की दवा तो मिल गई  

जिगर पर लगे ज़ख्म के लिए मरहम कहां से लाते 


शबाब का नशा तो बुढ़ापा आने से पहले ही उतर गया 

गुरूर का नशा उतरने में काफी वक्त लगा 


ज़मी का हर ज़र्रा धूल नहीं होता 

चांदी और सोना भी हिस्सा हैं उसी ज़मी का  


मिट्टी से इंसान का मोह कभी कम नहीं हुआ 

महलों में जन्म लेकर भी मिट्टी में जा मिला 


खुशियों में किफ़ायत की गुंजाइश नहीं होती 

यह नियामत है जो महंगी भी नहीं होती 


सुकून खरीदने बाज़ार नहीं जाते 

ये नियामत है जिसे कभी बाज़ार में बिकते नहीं देखा 


कुछ और जीने की ख्वाहिश थी मरने से ज़रा पहले 

रब के फरिश्तों से मिलते ही इरादा बदल डाला 


व्यथित थी नदी अपने विभिन्न परिचय से 

सागर में डूबकर उसने अपना अस्तित्व ही मिटा डाला 


लिबास  बदल बदल इतराते रहे उम्र भर

वो दिन भी आ गया जब एक चादर में रुख़सत हो गए 



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