तोहफ़ा
तोहफ़ा
न थी उम्मीद उनसे
महफिल में शिरकत की
वो ख़फ़ा थे हमसे
बेख़बर थे हम वज़ह से
बुलाया था उनको हमने
दिल की गहराईयों से
इनायत थी उनकी हम पर
रूबरू हुए जलसे में
इन्तेहा खुशी थी दिल में
इस ख़ूबसूरत जज़्बे से
था ये अनमोल तोहफ़ा
ख्वाहिश की एवज़ में।

