अब उम्मीदों से
अब उम्मीदों से
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अब उम्मीदों से प्यार कर बैठें हैं,
दिल से कुछ इस क़दर हार कर बैठें हैं,
क्या तुम सिर्फ मेरे हो?
ये सवाल खुद से अब बार बार कर बैठें हैं।
दिल को ऐसा दिलासा दे रहे हैं,
बिन धड़कन इसको जीना सिखा रहे हैं,
तुम्हें सिर्फ सोच सोचकर हम,
खुद में.. खुदको उलझा रहे हैं।
तुम्हें पाकर क्या.. नज़ारे होंगे,
तुम्हें पाकर भी क्या.. नज़ारे होंगे,
तुम हमें देखकर मुस्कुराओगे,
और हम खुद पर ही मुस्कुरा रहे होंगे..