तो लिख लेता हूं
तो लिख लेता हूं
ग़र कह ना पाऊं कुछ तुमसे ,
तो लिख लेता हूं।
ग़र कहना चाहूं कुछ तुमसे,
तो लिख लेता हूं।
यही दुनिया सी बन गई है बाद तुम्हारे,
यही झूठी आस में मैं,
फिर लिख लेता हूं।
याद जब भी आए तुम्हारी,
तो लिख लेता हूं।
भारी हो जाता है मन,
पर हाथ इस दिल पर रखकर ,
ही लिख लेता हूं।
कागज़ मैं, तुम कलम बन जाते हो,
यही मिलन के लिए मैं,
फिर लिख लेता हूं।
खुद को रात,तुम्हे
चांद मान लेता हूं।
और वो पहर,
जागे थोड़ा और,
लिख लेता हूं।
लिखते ही होते हो तुम साथ मेरे,
और यही लम्हा जीने के लिए मैं,
बार बार लिख लेता हूं।