तू थी तो सब अच्छा था
तू थी तो सब अच्छा था
तू थी तो सब अच्छा था
तेरे बगैर हर भीड़ में सन्नाटा था
तेरी ओढ़नी जब बन जाता था मेरा अम्बर
ख़ुशी के मारे तेरी तरह में भी चहक उठता था।
तू थी तो सब अच्छा था।
तब फागुन में रंग बरसता था और सावन में पानी
क्या गर्मी और क्या सर्दी हर मौसम तेरे जैसे थे सुहानी।
मैंने तो जिया था उम्र से बढ़कर अपनी जिंदगी
तूने तो मेरे पास थी और मैंने तुझमें समाया हुआ था।
तू थी तो सब अच्छा था।
दोस्त चिढ़ाने लगे थे कि मैं गोरा हो चुका था
भाभी का इतना भी क्या असर मैं निखर चुका था
आज याद आता है वो दिन बहुत मुझे
जब महफिलों में मेरा शान बढ़ जाता था।
तू थी तो सब अच्छा था।
अब चूम लेती है तेरी यादें मुझे सीने से लगा के
मैं कसमसा के रह जाता हूँ तेरी बाजी हार के
अब तो तेरी याद ही मेरा आखरी हमसफर
शायद मैं तेरी इश्क के कभी काबिल नहीं था।
तू थी तो सब अच्छा था।

