ये सावन की बात......
ये सावन की बात......
ये सावन की बात क्या कहना है
जब बरसती है तो बरसती है
ये धरती के मिटी को चूमती है
उसकी प्यास को तो वो बुझाती है
ये जब आँखों से बरसती है
और काँपते ओठों को चूमती है
कुछ तो वो भीगी ओठ पी जाती है
कुछ बहती धारा बन जाती है
ना धरती की दर्द किसे पता है
ना दिल की दर्द ओठों पे आती है
बस सावन बरसती जाती है
ये सावन की बात कुछ और है.........
शायद आकाश को कुछ पता है
धरती के दर्द को वो समझता है
पानी के बूंदें वो भी बरसाता है
आंखें उसके भी कुछ कहता है
सावन की धारा हो के बहता है
प्यासी धरती तो कुछ पी लेती है
कुछ नदियों की धार बढ़ाती है
वो अपना किनारा भूल जाती है
और बहती ही तो चली जाती है
कोई उसे रोक भी नहीं पाती है
ये दर्द दूसरों को तड़पाती है
ये सावन की बाते कुछ और है.......
वो तड़पता दिल धड़कता है
अपने दर्द को कभी छुपाता है
कभी आँखें भी तो नम हो जाते है
डर भी बहुत लगने लगता है
फिर बेबस लाचार हो जाता है
नम आँखों से पानी टपकता है
आंसुओं की धारा उसे कहते है
ओठ दर्द में कांपने लगते है
कुछ आंसुओं को वो पी जाता है
कुछ सावन की धारा बनता है
कोई उसे रोक तो नहीं पाता है
ये सावन की बाते कुछ और है......
कितनी अजब सी ये भी बात है
धरती से आसमान दूर भी है
एक दूसरे को समझते भी है
अपने दर्द को देखो, बांटते है
कोई आँसू है तो, कोई पी लेता है
दुनिया उसे सावन कहता है
वैसे ही दिल से आँखें दूर तो है
उसके दर्द ओठों पे ना आता है
वो कंपता हुए तो रुक जाता है
फिर आँखें उसे समझ लेता है
आँसू सावन की धारा बनती है
ये सावन की बाते कुछ और है.......