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Lokanath Rath

Action Others

4  

Lokanath Rath

Action Others

थोड़ा सा सुकून ....

थोड़ा सा सुकून ....

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क्या करूँ, मैं भी तो इनसान हूं,

इस भाग दौड़ के जिन्दगी का हिस्सा हूं,

जब सुबह सुबह आँख खुलता हूं,

कुछ पल के लिए सोचता हूं,

कुछ रास्ता ढूंढ़ने में लगता हूं,

मन की शान्ति को तलाश ने लगता हूं,

पर नाकाम हों जाता हूं,

फिर खुद को उस भीड़ में शामिल करता हूं,

उस भीड़ में भागता रहता हूं,

कुछ सपनों के लिए काम करता हूं,

कुछ अपनों के लिए भी करता हूं,

इस भाग दौड़ में थक भी जाता हूं,

मन की बेचैनी को अहसास करता हूं,

और उसको भूलने की कोशिश करता हूं,

उसमें भी मैं नाकाम रहता हूं,

बन्द आँखों के सहारे थोड़ा सा सुकून ढूंढता हूं


न जाने ये भागम भाग कब तक चलेगा?

ये दुनिया की भीड़ कब कम होगी ?

ये आशाओं का ढेर कब तक रहेगा?

ये सपनों का जलवा कब तक चलेगा?

ये जलवा और क्या क्या करवाएगा?

ये शरीर का थकान कब ख़त्म होगा?

ये थकान की बेचैनी कब मिट जाएगी?

ये बेचैनी कब छोड़ चली जाएगी ?

ये मन कब खुद को काबू में रखेगा?

ये खुद के लिए खुद कब वक़्त देगा?

ये वक़्त कब फिर एकांत में कुछ पल कब रहने देगा?

ये पल पल के इंतज़ार का कब अन्त होगा?

ये लम्बा इंतज़ार कब रंग लाएगा?

ये रंग में कब सब कुछ समा जाएगा?

ये सब कुछ फिर कब एक हो जाएगा?

और ये थोड़ा सा सुकून कब मिलेगा?



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