ये दिल...
ये दिल...
क्या कोई समझाए इस नादाँ दिल को...!
ये दिल है कि मानता नहीं...।
कोई पत्थर से न मारे इस बेचैन दिल को...
ये तो नफरत नहीं, बस प्यार की भाषा समझता है!
ये दिल बिकाऊ नहीं, कोई सौदागर क्या
दाम लगाए, क्या तोल-मोल करे...!!
इसे कोई कभी खरीद पाएगा नहीं,
ऐसा कोई खरीददार पैदा हुआ नहीं...
ये दिल ईश्वर और खुदा का नायाब तोहफा है,
जो कुछ खास खुशनसीबों को ही मिलता है...
ये प्यार कोई खेल नहीं, इसमें सौदे की बात
मुमकिन नहीं, इसे ताक़तवर कभी छिन सकता नहीं...
इस नायाब तोहफे को एक मुफलिस भी
पा सकता है,
अगर उसे प्यार की भाषा समझ आती होगी!
बस प्यार को प्यार ही रहने दो,
उसे दौलत से दूर न करो...!
ये खुदाई है, जो कि जितना बांटो,
उतनी ही बरक़त होगी ।
अगर तुम्हें प्यार की अदाएगी समझ आती होगी,
तुम कभी प्यार करनेवालों से
नफरत की बात न करोगे...!
प्यार का फूल कहीं दो दिलों के गुलशन में
अगर खिल जाए,
तो तुम कभी जात-पात की नकारात्मक सोच
इंसानियत के रिश्तों में विष-सा घोलकर
इस दुनिया में अंधा-युद्ध न छेड़ देना...!
ये एक खूबसूरत दुनिया है, जिसे ईश्वर और खुदा ने मिलकर इंसानों के लिए बनाया है...
इस खूबसूरत दुनिया में लकीर खिंचकर
दो नायाब दिलों को प्यार का दामन थामने से
न रोको...!!!
यहाँ प्यार का आशियां बसाओ, नफरत की दीवार न बनाओ...
ये हम सबका हक़ है...
चलो, हाथ थाम कर चलें, दिल से दिल मिलाकर चलें...!
आनेवाला कर एक ख्वाब ही नहीं, हक़ीक़त है;
इस खुशी को बस दिल से एहसास करो,
इसे दिमागी चालों से और पेचीदा न करो...
ये दुनिया प्यार की नींव पर बसी है ;
अपने दिल के गुलशन में गुलों की खुशबू बिखेर दो...
इंसानियत को गर्वित करो ।
