वो अंजान लड़की
वो अंजान लड़की
वो अंजान लड़की जीवन में आई,
पता नहीं क्या करने वो थी आई।
वो किराये पर कमरा लेकर रहती,
घर के सामने कमरा लेकर रहती।
वो अपनी दोनों सहेलियाँ के संग,
ये कमरा किराये पर लेकर रहती।
एक दिन हमको बाज़ार में मिली,
मैं अकेला तो वो भी थी अकेली।
पहली मुलाक़ात में प्यार हो गया,
दोनों ने निगाहों से इकरार किया।
वो भी छत पर कमरा लेकर रही,
और मैं भी छत पर सोया करता।
बहुत बढ़िया प्रेम-कहानी हमारी,
नज़र लगी बेदर्द संसार की सारी।
बिना बताये वो वहां से चली गई,
हमारी प्रेम-कहानी भी ख़त्म हुई।