मधुर मकरंद
मधुर मकरंद
अब घिर आये गगन में काले-काले बादल गड़गड़ाते :
झनझोड़े खाते समीरण में लहर शरद को फैलाते !
सरसिका के कँवल से हृदय को ज़ब इठलाते देखा :
कानों में दे गई अपना परिचय मधुर मकरंद सरीखा!
जूही चम्पा गुलाब हैं मदमाते और शरद सौरभ प्रचुर :
झूमते नाचते अठखेलीयां करते इसमें घनप्रिय मयूर!
सर्दी की इस ठिठुरन में बैठे अलाव तले अपनों संग :
बारहमासी खिलते रहते दोस्ती और रिश्तों के सुगंध!