मैं जगत जननी, मैं ही काली, मैं ही दुर्गा अदि शक्ति.................
मैं जगत जननी, मैं ही काली, मैं ही दुर्गा अदि शक्ति.................
वैसे मेरे तो बहुत रूप है पर मेरा
असली रूप एक ही है कि मैं एक औरत हूँ
मैं सीधी साधी, सरल, खुदी को ही शक्ति मान
बैठी हूँ मैं आँचल हूँ हर एक शख्स का
इस नवरात्रि के दिनों तो लोगों ने बहुत सेवा की
मेरी वाह नंगे पाव चले भला मेरे लिए
तुम इंसानों ने सीता तक की अग्नि परीक्षा ली,
मैं तो एक साधारण औरत हूँ मेरा क्या होगा पता नहीं
क्यों देते हो हम औरतों को इतनी
इज्जत सिर्फ नवरात्रि में और बाकि दिन ?
पग पग पर मुझे लड़ना होता हैं अपने
आप और लोगों से, डर सा लगता है अब तो
मैं अपने पापा की नन्ही परी थी
बचपन में पर अब लोगो की नजर बदल गयी है
पापा की परी अब ज्यादा देर बहार नहीं रह सकती
लोगों की नजर बुरी है पता नहीं कब शिकार बन जाये
मैं रोज रात को रोती हूँ पूछती हूँ भगवान मैंने ऐसा
कोनसा गुनाह किहा था जो तूने मुझे लड़की बनाया
मै लड़ रही हूँ अंधरे से रोशनी दिखने के लिए
मैं लड़की हूँ तो क्या है दो दो घर के दिए जलाऊँगी
सोचती हूँ भला मैं आदिशक्ति कहती हूँ
न अब तो ये बात सच करके दिखानी होगी
मैं लड़ती हूँ इस सनसनाती हवा से अपना
हक़ पूछती हूँ मै लड़की हूँ तो क्या ?
सोच लिया है मैंने मैं ऊंचे आसमान में उड़ूँगी,
मैं लोग को आदिशक्ति क्या होती है अहसास दिलाना है।