तू कलम है जिंदगी की...
तू कलम है जिंदगी की...
मैं कोरा कागज ही था तू आयी और मेरे जिन्दगी मे रंग भरना चालू किया
मैं रोक न पाई खुदको और नए नए रंग मुझे अपनेसे लगने लगे
पर कभी सोचा ही नहीं अगर पानी पड़ गया मेरे ऊपर तो खुदको पहचान ही न पायी
गुरुर था मुझे मेरे साफ सुधरे होने का पैर जैसे जैसे लोग लिखते गए मेरे ऊपर मुझमे एक जान सी आने लगी मैं समझने लगी शब्दों को महसूस करने लगी उन्हे
वो बोलना चाह रहे थे कुछ मुझे मैं किसी का प्रेम पत्र बनी किसी की बुक बनी किसी की जिन्दगी बनी
मैं लोगो के जजबातो को समझने लगी और मै खुश रहने लगी
कलम न होती तो मेरा साफ सुथरा रंग कुछ काम न होता न मै कुछ समझ पाती न कुछ कह पाती