अस्तित्व
अस्तित्व
अनेको अनेक हैं तेरे रूप नारी,
कभी की नफ़रत कभी प्राणो से प्यारी।
कभी चल देता तुरंत धमकाकर,
कभी चल देता प्यार से सहलाकर।
कभी पैरों की जूती, कभी सर का ताज़,
कभी ग़ैर तो कभी हमराज़।
नाम रोशन करें, तो— मेरे बच्चे,
वरना — नहीं पाले, तुमने अच्छे।
ये उसके पैसों का ज़ोर है,
या मर्दानगी का शोर है
जो कर रहा तुम्हें कमज़ोर है।
क्या तेरी हैसियत सिर्फ़ घर के काम में है,
वंश चलाने के लिए, दिए नाम में है।
घटने के लिए घटी ऐसी नहीं घटना,
ईश्वर से फुर्सत में बनी ऐसी हो रचना।
अपना अस्तित्व पहचान ऐ नारी,
सिमटना छोड़, धर परे ये साड़ी
संभावनाओं के पंख पसार,
हो ज़रूरी तो कर प्रहार।
तुझ पर फेंकी हर ईंट उठा,
जोड़ सभी को मज़बूत नींव बना।