मीठी चाशनी
मीठी चाशनी
बोली की मीठी चाशनी में,
कड़वाहट को डूबोना है,
जन जन के दिल में छुपे खटास को,
पल भर में दूर भगाना है,
अशांति का विष मिटाकर,
शांति सुधा को लाना है,
शब्द सुधा की वर्षा कर,
जन-जन की प्यास मिटाना है,
निर्जीव हुए जन जीवन को,
क्षण में जीवंत बनाना है,
प्रेम की मीठी चाशनी में डूब कर,
उस पार हमें अब जाना है,
जहां सद्भाव की गंगा बहती है,
उसमें डुबकी लगाना है,
बढ़ रही मानव दूरी को,
करीब राह में लाना है,
बहुजन हिताय के गीत सुनाकर,
सब में प्यार जगाना है,
शीतल जल के फव्वारे से,
धरती का ताप मिटाना हैै,
सूखे पेड़, मुरझाए फूलों को,
तृप्त जल से नहलाना है,
आकाश से गिरते शोलों को,
समुद्र के जल से बुझाना है,
नफरत से फैली अग्नि पर,
प्रेम सरिता बहाना है,
मीठी चाशनी में डूब कर,
नीम भी स्वाद बदलता है,
कड़वा पत्ता चाशनी से लिपट कर,
जीवन औषधि बन जाता है,
वीणा भी अपने मधुर स्वर से,
जीवन गीत सुनाती है,
अज्ञान अंधकार को दूर भगाकर,
ज्ञान की ज्योति जलाती है,
छेना मावा चाशनी से लिपट कर,
मधुर मिष्ठान बन जाता है,
हस्त स्पर्श पाकर मां के,
महाप्रसाद बन जाता है,
मीठी चाशनी से लिपटकर,
पीयूष जीवन बन जाता है!
