मौन
मौन
मर्जी से अपनी....
गुजारता नहीं कोई,
मुफलिसी में अपने दिन....!
मर्जी से अपनी....
चुनता नहीं कोई,
फजीहतों की मंजिल....!
मर्जी से अपनी....
जाता नहीं कोई,
जालिमों के गांव....!
मर्जी से अपनी....
चुभाता नहीं कोई,
कांटे अपने पांव....!
हवाओं में भी....
जहर है यहां,
चींटियों के भी फन होते हैं....!
लाख बचाओ....
दामन को अपने,
कांटे फांस ही लेते हैं....!
आ बैल....
मुझे मार,
अब ये कहना पड़ता नहीं....!
देखते ही....
टूट पड़ता है
एक भी पल रुकता नहीं....!
इंसानों की....
दुनिया है ये,
पर मिलते कब इंसान यहां....!
देखते हो तमाशा....
मौन,
छुपकर तुम बैठे हो कहां...?
