आज का आदमी
आज का आदमी
खूबसूरत आदमी का भी चेहरा,
तब बड़ा भीभत्सस् नजर आता है।
अपने अंदर का आदमी........,
जब वो बाहर निकालता है।
क्या मूर्ख क्या ज्ञानी कई कई चरित्र
शर्तिया पाला करते हैं अभ्यंतर्।
पड़ती है जब जिसकी जरूरत उसे,
ला खड़ा करते हैं सामने क्षण के अंदर।
यही रहते हैं हमेशा आदमी की परिधि में,
अदृश्य और अकाट्य कवच बनकर।
अपनों से भी बढ़कर हुआ करते हैं ये,
इसी के सहारे चलते हैं वो सीधा तानकर।
