बसंत
बसंत
नव मकरंद ले नवल सुगंध,मलयांचल तज मलय बयार ।
अंकारूढ़ आह्लादित कानन,अवनि आंगन बसंत बहार।।
नव यौवना प्रकृति चंचला, महके तन पे इत्र चंदन,
शबनम मुुुुुुक्ता थाल सुसज्जित, ऋतुराज का स्वागत वंंदन ।
पल्लवित, पुष्पित रूप श्रृंगरित, अधर पंखुड़ी, मधु -मुस्कान,
नृत्य मग्न नव दुल्हन सरसों, कण्ठ-कोकिला मधुरिम गान ।
तरुवर-तन संंग लिपट लतिका,प्रसूनों की करें बौछार।अंकारूढ़ . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 1
चुनरी स्वर्णिम शीश सजाये धारे धरा हरित परिधान,
उचका -उचका माँसल कन्धे, अवलोकेे बासंती शान।
तितली बदन वसन बहुुुुरंगी ,चूमे मंजु मुख अलबेली,
सुमधुरिम गीत स्वागत गुन- गुन, मधुमक्षिका सखी-सहेेेेली।
कोमल कली अली करे केलि, गुलशन को करता गुलजार।
अंकारू
ढ़. . . . . . . . . . . . . . . . . . .2.
जन-जन तन धरे महीन वसन, होने लगा शीतावसान,
तन-तन तरंग, मन-मन उमंग, उर-उर उठे भाव तूफान।
वीणा पाणी के उद्भव संग, येे सुप्त कवि संसार उठा ,
नव प्रीत नीर हृदय सिन्धु मेें,ये नूतन भाव ज्वार उठा।
मात शारदे से संदेशित, झनकेे मन वीणा के तार ।
अंकारूढ़. . . . . . . . . . . . . . . .. 3.
नवल भाव नव उपमानोंं संग ,कलम परियों ने खोले पर।
थिरक -थिरक मन-भाव उकेरे, मंच चौकोने कागज पर।
नव गति, नव लय, ताल ,छंद नव, नव दुल्हन सी सजी नव कृृृृति ,
नवीन भोर सा भाव सुुुुुुसृजन,बदली-बदली सी मनोवृृृृति।
शब्द -शब्द रंगा बासंती, नव भाषा नव धवल विचार।
अंकारूढ़ आह्लादित कानन, अवनि आंगन बसंत बहार ।।