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jaidev sharma

Inspirational

5  

jaidev sharma

Inspirational

बसंत

बसंत

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 नव मकरंद ले नवल सुगंध,मलयांचल तज मलय बयार ।

अंकारूढ़ आह्लादित कानन,अवनि आंगन बसंत बहार।। 


नव यौवना प्रकृति चंचला, महके तन पे इत्र चंदन, 

शबनम मुुुुुुक्ता थाल सुसज्जित, ऋतुराज का स्वागत वंंदन ।

पल्लवित, पुष्पित रूप श्रृंगरित, अधर पंखुड़ी, मधु -मुस्कान, 

नृत्य मग्न नव दुल्हन सरसों, कण्ठ-कोकिला मधुरिम गान ।

तरुवर-तन संंग लिपट लतिका,प्रसूनों की करें बौछार।अंकारूढ़ . . .  . . . . . . . . . . . . . . . . 1


चुनरी स्वर्णिम शीश सजाये धारे धरा हरित परिधान,

उचका -उचका माँसल कन्धे, अवलोकेे बासंती शान। 

तितली बदन वसन बहुुुुरंगी ,चूमे मंजु मुख अलबेली, 

सुमधुरिम गीत स्वागत गुन- गुन, मधुमक्षिका सखी-सहेेेेली।

कोमल कली अली करे केलि, गुलशन को करता गुलजार। 

अंकारू

ढ़. . . . . . . . . . . . . . . . . .  .2.


जन-जन तन धरे महीन वसन, होने लगा शीतावसान, 

तन-तन तरंग, मन-मन उमंग, उर-उर उठे भाव तूफान।

वीणा पाणी के उद्भव संग, येे सुप्त कवि संसार उठा ,

नव प्रीत नीर हृदय सिन्धु मेें,ये नूतन भाव ज्वार उठा। 

मात शारदे से संदेशित, झनकेे मन वीणा के तार ।

अंकारूढ़. . . . . . . . . . . .   . . . .. 3.


नवल भाव नव उपमानोंं संग ,कलम परियों ने खोले पर। 

थिरक -थिरक मन-भाव उकेरे, मंच चौकोने कागज पर। 

नव गति, नव लय, ताल ,छंद नव, नव दुल्हन सी सजी नव कृृृृति ,

नवीन भोर सा भाव सुुुुुुसृजन,बदली-बदली सी मनोवृृृृति।

शब्द -शब्द रंगा बासंती, नव भाषा नव धवल विचार। 

अंकारूढ़ आह्लादित कानन, अवनि आंगन बसंत बहार ।।

  


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