तू भी मन का दीप जला
तू भी मन का दीप जला
दीपों का है पर्व दिवाली, तू भी मन का दीप जला।
मन मंदिर में कर उजियारा, मन का कर ले दूर गिला।।
मन में व्याप्त अज्ञान तिमिर है,अवगुण करते वास यहाँ,
काम, क्रोध मद,लोभ,मोह का,डला गले में फांस यहाँ,
जीवन को तू उपवन कर ले,जन गण मन का कमल खिला।
दीपों का है .................................1
नफ़रत की दीवार गिरा दे, जो अपनों को बांट रही,
जिस डाल पे किया बसेरा,उस ही डाल को काट रही,
माँ माटी का वंदन कर ले, जिसमें जन्मा,बढ़ा, पला।
दीपोंं का है .................................2
तोपों की आवाज मौन कर, म्यानों में तलवारों को,
मन से मन की ज्योत जगा ले, बना फूल अंगारों को,
होली न कभी बने दिवाली, स्वाभिमान न जाए छला।
दीपों का है .................................3
बाहर निकल जाति मजहब से, ज्योत से ज्योत जलाना सीख,
देश धर्म दिल में अपना ले ,काम वतन के आना सीख,
परहित जीना परहित मरना,जीवन की ले सीख कला।
दीपों का है .................................4
दिवाली के दीप जला तूू ,शहीदों की मजारों पे,
नाज़ करेगा देश सदा ही, मातृ-भूमि के प्यारों पे,
हार बना फंदे फांसी को,जिनका सजता रहा गला।
दीपों का है .................................5
सरहद पर हो दीप कतारें,उनकी भी मने दिवाली,
भारत माँ के पूूूत लाडले,करते सब की रखवाली,
रात चांंदनी हो उसकी जो,ओढ़ तिरंगा कफन चला।
दीपों का है पर्व दीवाली ,तू भी मन का दीप जला।
मन मंदिर में कर उजियारा, मन का कर ले दूर गिला।।
