कविता
कविता
नाजों में पली
मेरी नन्ही परी
मेरी बेटी मेरी
आन और शान है
जब खुली आँख उसकी
और देखा मुझे
मुझको जीवन की सारी
खुशी मिल गई
अपने नन्हे कदम से
मेरे पास आती
मेरे गाल पर नन्ही
उँगली छुआती
जमाने की खुशियाँ
लुटाती थी वो
मेरी नन्ही परी
मेरी नन्ही परी
कभी घोड़ा गाड़ी
बन कर सवारी
कभी पीठ पर बैठ
जाती थी वो
खिलौनों पे खुशियाँ
लुटाती थी वो
कभी सारी सुधबुध
भूल जाती थी वो
मेरी नन्ही परी
मेरी नन्ही परी
जब वो जाने लगी
पाठशाला में पढ़ने
कइयों को पाठ
पढ़ाती थी वो
जब सयानी हुई
मुझको चिंता हुई
कैसे खोजूँगा उसके
लिए राजकंवर
अपनी माँ से गले
मिलकर रोने लगी
अपने भय्या के कानों
में कहने लगी
माँ पिताजी का पूरा
ख्याल रखना
मेरी राखी की इतनी
सी लाज रखना
मेरी नन्ही परी
मेरी नन्ही परी।