मेरी लेखनी
मेरी लेखनी
अपने उद्गारों
अपनी भावनाओं
अपनी कल्पनाओं के तार से
अपनी लेखनिओं को बुनता हूँ !
कभी लाल
कभी पीली
आसमानी
गुलाबी झालरों से रंगोलियां
स्वप्नों का सजाता हूँ !
बिखेर देता हूँ सुगंध चम्पा
चमेली
गुलाब
गेंदा और राजनीगंधा का
लगने लगता हैं नव पल्लव
पेड़ -पौधों में आ गए !
रंग -विरंगें नए फूलों का आगमन हो गया
झूमते वसंत फिर या गए !
सारे रसअलंकार और विभिन्य विधाओं की
चाशनी में घोलकर सोमरस बनाता हूँ !
अपनी कविताओं में हर क्षण सत्यम
शिवम और सुंदरम का मंत्र दोहराता हूँ !
जो रस में डुबना चाहे वो रस में डूबता हैं !
जिसे है इल्म ताजी हवा की
उसको सही वो जानता है !