सुनो न।
सुनो न।
सुनो न !
कि अब ज़िन्दगी
तुम्हारे सिवा कुछ
भाता नहीं है।
ग़ज़ल में तुम्हारे नाम के
सिवा कुछ आता नहीं है।
पूछते तो है लोग अक़्सर
हाल-ए-दिल मगर।
जिया जाय कैसे बदहाली में
कोई बताता नहीं है।
कभी धूप कभी बारिश ने
इनको रोका है मगर।
इस गरीब की गरीबी को
किसी ने रोका नही है।
सुनो न !
कि अब ज़िन्दगी
तुम्हारे सिवा कुछ भाता नहीं है।
ग़ज़ल में तुम्हारे नाम के सिवा
कुछ आता नहीं है।
