कितनी रातें 2
कितनी रातें 2
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कितनी रातें काटनी है तुम बिन तुम्ही बताओ न।
ज़ख्म ले सीने में कैसे मुसकुराए तुम्ही बताओ न।।
देखो न कि आज तन्हा अकेला हूँ हज़ारों में ऐसे।
दिल है जो ग़म-ए- दरिया तो क्या गुनगुनाऊँ मैं।।
तुम्हारी चूड़ियों की खनक से लबों पे मुस्कान होती थी।
अब तो पत्तों की सरसराहट भी चुभने लगी है।।
कितनी रातें काटनी है तुम बिन तुम्ही बताओ न।
ज़ख्म ले सीने में कैसे मुसकुराए तुम्ही बताओ न।।