बज़्म 1
बज़्म 1
अभी तुमको तुमसा कोई इश्क़ करने वाला न मिलेगा।
हो तुम कश्ती बहते हुए दरिया में किनारा न मिलेगा।।
जिसे चाहो उसे अपना सनम दिलदार बोल दो वैभव।
क्या पता सोये जो इसबार तो फिर सवेरा न मिलेगा।।
देखो न अब भीड़ में भी तन्हाई सताने लगी है।
नही हो तुम पर हर वक़्त आवाज़ तुम्हारी आने लगी है।
अब तो अकेले में रोना फिर शुरू हो गया है।
रो रो के ये गला भी रुन्ध गया है।।
इतना रोये है कि अब आँसू भी नही आते।
हर वक़्त मुस्कुराने की आदत थी जिन्हें
वो लब अब चुप है।

