बज़्म 2
बज़्म 2
कितने ज़ख़्मो को दिल मे छिपाया है तुमने।
फिर से किसी को मोहब्बत बनाया है तुमने।।
वो था न मोहब्बत के क़ाबिल कभी,
फिर भी काट दी इंतज़ार में कितनी रातें तुमने।
अब आईने को गौर से देखो ज़रा,
क्या फिर सूनी माँग को सजाया है तुमने।।
कितने दामन थामे कितने साथ छोड़ गए।
तब भी तो तन्हा थे अब भी तन्हा रह गए।।
न बारिश आंखों की रुकी न प्यास लबों की मिटती है।
तमाशा ही है जिंदगी का पिस कर ही मेहंदी रचती है।।
काश के कह पाता के सब ठीक है।
ये तो जिंदगी है कभी तीखी कभी मीठी हो ही जाती है।।
बस ये तो आंखे है जो हाल-ए-दिल बता देती है।
वरना अब ज़ुबां कहाँ कुछ कह पाती है।।