बदले स्वयं को
बदले स्वयं को
नहीं समझता इंसान
क्या चाहे भगवान
समझेगा भी नहीं वह
किया उसने गलत उपयोग जो
भगवान ने बनाया इंसान को
नहीं पहुँचने नुकसान धरती को
बल्कि करने भला सबको!
उन्ही की दुनिया में खोए
ना सुनके उनकी बात
उन्ही का करें अपमान
फिर भी हमेशा देते हमारा साथ
नहीं है इंसान बडा
नहीं है वह होशियार
जो ना समझे उनके संदेश को
मूल्य नाहीं उसको पर्यावरण का,
नाही जिंदगी का
क्यों ना कहे इंसान को मूर्ख
पूजता है भगवान को
और करता तबाह उसी की देन को
चलो आओ बदले
ये दुरभाव, ये स्वार्थपरता,
है हम इसीका हिस्सा
आओ सीख लें जीना
इसीके लिए!
