“ निराधार उत्कंठा ”
“ निराधार उत्कंठा ”
ऐसी उत्कंठा
ही क्यों
मनोमस्तिष्क
पर छायी रहती है !
आप मुझे सदा
निहारा करें
यही धारणा
बस बनी रहती है !!
आप मेरी
प्रशंसा ही सिर्फ
क्यों किया करें ?
मेरे बिंबों पर
आप केवल मुस्कुराया
ही क्यों करें ?
मेरी भंगिमाओं
को देख कर
यथार्थता से कोसों
दूर निकलकर
मुझे एक झूठी प्रोत्साहन
देने लगे !
इस तरह
मेरी उत्कंठाओं
को निराधार
उसकाने लगे !!
हर कोई अपने
कार्यों में लगा रहता है !
हर समय
अपनी गतिविधियों पर
सब नज़र नहीं
रख सकता है !!
अच्छी बातें,
नया दृष्टिकोण
अच्छी सोच,
आज नहीं तो कल
सबको आकर्षित
करेगी !
हम रहें ना रहें
हमारी लेखनी
कविता
सकारात्मक व्यंग
और कृतियाँ
इतिहास के पन्नों में
अमर बनके सदा रहा करेगी !!