पानी
पानी
मुझे खोजा गया दर-दर
अपना ताप-संताप मिटा लिया पर
कहीं शीतल-निर्झर-ऊष्ण-सौम्य
मेरे रुप अनेक थे, निराले से -
मुझे चलना था भूतल पर
मोड़ पर लहर टकरा गई
अपने बहाव ने ही बहा लिया
ऊपर उठाया मुझे मैंने कुछ पल
दूसरे ही क्षण मिट्टी दिख गई
जो सबका रंग दिखाता था
आज वो मलीन हो गया,
वो रंगीन हो गया
अपना अस्तित्व गर्त से मिलाकर
उसने स्वयं को खो दिया
पानी तू मत उछल
आज तू पानी-पानी हो गया।
