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मेरी दीदी

मेरी दीदी

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माँ न होकर भी

माँ बन गयी,

कड़ी धूप में तू

छाँव बन गयी,

बेरहम वक्त ने

ज़ख्म कम न दिये

तेरे प्यार के

मरहम ने

दर्द होने न दिये,

जब डगमगाये

कदम जिन्दगी के

सफर में मेरे

इक तेरे हाथ ने

बढ़ कर थामा मुझे,

कभी छुपकर तुझसे

जो रोया मैं

तेरी आँखों ने

तब भी समझा मुझे,

ख्वाहिशों को अपने

कभी पंख न दिये

मेरी जरूरतों के

ख़ातिर तुने

क्या-क्या न किया,

सारे ज़ज़्बातोँ को

अन्दर समेटे हुए

मैंने देखा है तुझको

मुस्कराते हुए,

रेत मुठ्ठी से जैसे

फिसल जाती है

बुरे दौर भी वैसे

गुजर जाते हैं ,

सुर्ख नैनों में खुशियाँ

चमकती रहे,

तकदीर तेरी

यूँ सुनहरी रहे,

पूरी हो हर

तम्मना तेरी

बस यही आख्रिरी

इबादत है मेरी.....


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