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जरा ठहरो

जरा ठहरो

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कुछ वक्त तो जरा और ठहरो

महफ़िल शबाब पे आने को है

माना तेरी नजरों में नशा है बहुत

मगर थोड़ी सी जाम भी छलकने को है

यूँ तो परवानों का मजमा है यहाँ

अभी तो मुहब्बत की शमा जलने को है

गजलों नगमों की शाम यूँ है सजी

दास्तान-ए-मुहब्बत सुनने-सुनाने को है

ओढो न यूँ मुस्कराहट के नकाब

राज-ए-गम बेपर्दा होने को है...


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