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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance

कब तक

कब तक

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तू कब तक सनम मेरे दिल से खेलती रहेगी

तू कब तक मेरे दिल से लहू निकालती रहेगी

एक न एक दिन तो तू भी फूट फूट कर रोयेगी

तू कब तक मुझे, मेरे आंसूओ में डुबोती रहेगी

ये प्यार कोई गुड्डा, गुड़ियों का खेल तो नहीं है

तू कब तक इस दिल को खिलौना मानती रहेगी


हर चीज की एक हद तो होती ही है, मेरे सनम

तू कब तक मेरी बेहद मोहब्बत को टालती रहेगी

तुझे मोहब्बत नहीं है, तो एकबार में ही मना कर दे,

तू कब तक मुझे इंतज़ार में यूं ही जलाती रहेगी

हमने तुझे अपनी जान क्या मान लिया है, सनम

तू क्या रोज ही इस दीवाने की जान लेती रहेगी


तू निकल जाती जिंदगी से तो कोई बात न थी,

तू कब तक जिंदगी में सांस बनकर चलती रहेगी

तुझ से प्यार करके में बुरी तरह से उलझ गया हूं,

तू कब तक दिल में शूल बनकर धड़कती रहेगी

तेरा नाम लेना अब शौक नहीं मजबूरी बन गया है

तू कब तक लबों पर अंगारे बन दहकती रहेगी


मेरी आखिरी मन्नत तू है, मेरी आखिरी जन्नत तू है,

तू कब तक मेरी इबादत को अनसुना करती रहेगी

शिद्दत से प्यार करो तो ख़ुदा भी मिल जाता है,

तू कब तक मेरे ख़ुदा को मुझसे दूर करती रहेगी


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