सिलवट
सिलवट
बिस्तर पर की सिलवटें, बोलें पूरी बात
साजन हैं परदेश में ,मिला बड़ा आघात।
विरह अग्नि में तन जले, तनिक न मिलता चैन,
खान पान की सुध नहीं, बदलें करवट रात।
माथे पर की सिलवटें है चिंता की बात
नींद न आती रात में, बिन मौसम बरसात।
घर खर्चे की फिक्र ने, लूटा दिन का चैन,
फिर उसकी वो झोपड़ी, टपकी पूरी रात।
बूढी माँ की झुर्रियां, जीवन का संघर्ष
इन सिलवट के मोल में, संतति का उत्कर्ष।
उसका आँचल धूप में, सुखमय शीतल छाँव,
देख सुघड़ संतान को, उसको मिलता।