अहिंसा
अहिंसा
सत्य अहिंसा बात पुरानी, रार मचाना आता है।
दूजे घर में आग लगा के, दाल पकाना आता है।।
देख! द्रवित होते अब गांधी, गद्दारों से देश भरा,
शिक्षा के मंदिर में देखो, हथियारों से नाता है।।
अपशब्दों का दौर बढ़ा है, वादों की अब झड़ी लगी,
विश्वास नहीं नेताओं पर, इंसान ठगा जाता है।
रामराज्य का सपना देखा, हिंसा बढ़ती जाती है,
अपनी ढपली राग बजाते, भारत कहाँ सुहाता है।।
सीमाओं पर जो डटे रहे, याद करो बलिदानों को
इन छोटी बातों पर तुमको, गाल बजाना भाता है।
समृद्ध संस्कृति भारत की है, इसका मान बढ़ाएं हम,
सत्य अहिंसा का व्रत लेकर, वचन निभाना आता है।