कुंडलिया
कुंडलिया
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बीती यादें कोष में, मिले जुले हैं भाव।
कुछ यादों से सुख मिले, कुछ से रिसते घाव।
कुछ से रिसते घाव, भूलना इनको चाहा।
कब तक सुनें कराह, किया घावों को स्वाहा।
कहती अनु ये बात, गरल वो कब तक पीती।
जीवन की अब साँझ, भुलाई बातें बीती।
बातें छोटी ही सही, बिगड़ रहे सम्बन्ध।
सहन शक्ति का ह्रास हैं, छूटा जाये स्कंध।
छूटा जाये स्कंध, बने थे कभी सहारा।
हुई अहम की जीत, छूटता साथी प्यारा।
बीत गया वो काल, सुखद थी बीती रातें।
लायें वही प्रभात, भूलिये छोटी बातें।
