बूढ़ा पीपल
बूढ़ा पीपल
एक शाम मोहब्बत का वास्ता देके,
तुम मेरा हाथ खींचे मुझे,
उस नुक्कड़ पे सदियों से पहरा देते,
बूढ़े पीपल के पास ले गयी
और एक काला सा ताबीज़,
मुझसे ज़बरदस्ती उस पेड़ की
झुकी पुरानी टहनियों पर बंधवा दिया तुमने।
हरी पत्तियों की झांकियों के बजाये,
काले, सफ़ेद चमकीले से धागों से जगमगा रहा था वो पुराना पीपल।
उस वक़्त तुम्हारी नादानी समझ के उस वाकिये को हवा में उड़ा दिया था मैंने,
भला बेजान सा पेड़ कहाँ मोहब्बत जैसे इंसानी ज़ज़्बे से मुखातिब होगा?
आज अरसे बाद किस्मत उसी नुक्कड़ पे खींच ले आयी ,
वो बूढ़ा पीपल उम्र के आखरी पड़ाव पर था ,
बेजान बिखरा गिनती की सांसें हिचकियों में ले रहा था,
सारे पत्ते झड़ गए थे ,
जड़ें रूखी सी सूनी सी बेवा की तरह फैली थीं,
पर आज भी उसकी बूढी टहनियों ने तुम्हारे प्यार का बोझ उठा रखा था ,
सहेज के समेट के आज भी उसकी हिफाज़त कर रही थी,
मानो अमानत की निगरानी में लगी हो ,
बेइन्तेहाँ कोशिश की मैंने उस ताबीज़ को उतारने की अफ़सोस पर,
वो तुम्हारी अमानत को पूरी शिद्दत से खुद से जकड़े रही ,
बरसों पहले की अपनी उस सोच पे हंसी आ गयी मुझे,
कितना गलत था मैं,
मोहब्बत जैसा पाकीजा एहसास
इन दरख्तों की आगोश में ही महफ़ूज़ है बस।