चल उठ खड़ा हो फिर से , देख नया सूरज है निकला
चल उठ खड़ा हो फिर से , देख नया सूरज है निकला
टूटा बिखरा मायूस डर के,
बंदे तू क्यों है अब पड़ा ?
चल उठ खड़ा हो फिर से,
देख नया सूरज है निकला।
चाय पे अठखेलियों से गूँजती है फिर गली,
पकवानो की महक से है पूरा मोहल्ला फिर खिला।
टूटा बिखरा मायूस डर के,
बंदे तू क्यों है अब पड़ा ?
चल उठ खड़ा हो फिर से,
देख नया सूरज है निकला।
सड़कों पर रौशन वही रंगीन चेहरों का गुच्छा,
वही घड़ी की सुइयों पे भागता दिख रहा हर इंसान।
टूटा बिखरा मायूस डर के,
बंदे तू क्यों है अब पड़ा ?
चल उठ खड़ा हो फिर से,
देख नया सूरज है निकला।
अब नहीं कहीं है डर के बादल, ना ही है सन्नाटा पसरा,
वक़्त तलाशता है तुझे चल उठ और लिख इतिहास नया।
टूटा बिखरा मायूस डर के,
बंदे तू क्यों है अब पड़ा ?
चल उठ खड़ा हो फिर से,
देख नया सूरज है निकला।
