राही तू चल।
राही तू चल।
पंथ नहीं आसान तुम्हारा
गहरी सरिता, तंग किनारा,
अम्बर से बरसेंगे ओले
रवि पथ डाले दहके शोले,
अँधियारों से लड़ते जाना
पर्वत से खुलकर टकराना।
कहता जीवन का हर -एक - पल।
राही तू चल।
कंकड़, पत्थर, रोड़े देगा
जग काँटे न थोड़े देगा,
मोड़ मिलेगा नया- पुराना
राहों में मत तू भरमाना,
लक्ष्य न धूमिल होने पाये
दुर्दिन के जब लिपटें साये।
संचित करके रखना है बल।
राही तू चल।
शाम हुई तो सो जा पथ में
तू नहीं नृप जो जाये रथ में,
बाधाओं के अम्बारों पर
निडर चलो असि की धारों पर,
तीव्र प्रभंजन पर सवार तू
विघ्न विकट पर कर प्रहार तू।
हर विपदा का निकलेगा हल।
राही तू चल।
मस्ती का आलम जग देखे
रुके न पग जो खाये धोखे,
गिरकर भी उठ जाना होगा
मंज़िल तुझको पाना होगा,
तन अपना पाषाण बना ले
चलकर पथ आसान बना ले।
बढ़ता जा दिन जाएगा ढ़ल।
राही तू चल।
अनिल मिश्र प्रहरी।
