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Anil Mishra Prahari

Abstract

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Anil Mishra Prahari

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मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।

मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।

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मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।

नहीं चाहिए दाता मुझको

सूर्य, चंद्र, ग्रह सारे,

मेरी झोली में भर देना

टूटे – फूटे तारे।

नहीं कामना लूँ पूरा आकाश

मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।

नींद हमारी नहीं माँगती

फूलों भरा बिछावन,

प्यास हमारी कभी न देखे

मस्त घटाएँ, सावन।

जीने को कुछ आशाएँ हों पास

मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।

थका हुआ मन चाहे सर पर

एक विरल, लघु छाँव,

चलता ही मैं रहूँ निरंतर

जब तक थके न पाँव।

थोड़ी – सी दे हवा, रुके न साँस

मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।

पद आहत पर कभी न चाहूँ

सुखद, मनोरम – राह,

आँसू मेरे साथ निभाएँ

जब – जब निकले आह।

पर्णकुटी में मेरा परम निवास।

मुझे नहीं नभ छूने का अभिलाष।



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