रूह जाने और तू जाने - प्रज्ञान
रूह जाने और तू जाने - प्रज्ञान
क्या जाने ये दुनिया मायने मेरे,
ये मतलबी दौर ये क्यों जाने,
कैसा है इस दीवाने का हाल,
एक मेरी रूह जाने, एक सिर्फ़ दुनिया जाने॥
मय्यसर नहीं मुझे रातों की नींद,
तुझको ही ढूँढ़ू हर एक पल में,
मुमकिन नहीं था जब होना मेरा,
ढूँढे ये रिंद तुझको उस कल में,
जाता हूँ क्यों ये मुसाफ़िर मयखाने,
एक मेरी रूह जाने, एक सिर्फ़ तू जाने।
समझकर इश्क़ को इलाही ज़माना,
न चाहे है इससे पीछा छुड़ाना,
जहन्नुम में पहुँचा, मैं जन्नत का प्यासा,
इश्क़ ये ख़ुदगर्ज़ इश्क़ है हताशा,
समझा लिया है दिल को, कम्बख़्त ना माने,
एक मेरी रूह जाने एक सिर्फ़ तू जाने,
न मिला तेरा इश्क़ तो ग़म भी नहीं,
जिस्म की चाह वाले हम भी नहीं,
हमने देखा है बगीचे में एक मासूम फूल,
प्रेम में तोड़े फूल वो अहम भी नहीं,
अब थोड़े नये हैं रहते हैं गुमसुम से,
कितने पास में रहते हैं, कितने दूर हैं हम तुमसे,
तेरे थे, तेरे हैं, तेरे ही रहेंगे दीवाने,
एक मेरी रूह जाने एक सिर्फ़ तू जाने।