ग़ज़लें
ग़ज़लें
हर घड़ी दिल में जो मचलते हैं
ख्वाब आंखों में वही पलते हैं
कोई एहसास का छुए तो सही
लफ्ज तो खुद ब खुद निकलते हैं
मैं जो तेरी दुआ में शामिल हूं
जाने कितने ही लोग जलते हैं
तेरे होने को मैने यूं जाना
एक संग सौ चराग जलते हैं,
उमस की रात हो बिजली न आए,
किसी की याद अब ऐसी न आए।
बहुत अच्छा है फल आए हैं लेकिन,
दुआ ये भी करो आंधी न आए।
जहां हम साथ दोनों चल न पाएं,
गली ऐसी कोई संकरी न आए।
नदी तो चाहती है सिर्फ इतना,
किसी भी जाल में मछली न आए।
उदासी हद से ज्यादा बढ गई है,
खिले हैं फूल पर तितली न आए।
केवल दोहरापन जीते हैं,
हम कब अपना मन जीते हैं।
यूं मन के निरधन जीते हैं,
दिनभर खालीपन जीते हैं।
बाकी सब ऋण हो जाता है,
जब हम केवल धन जीते हैं।
शौक कहो या मजबूरी में,
अपना-अपना तन जीते हैं।
औरों से उम्मीदों वाली,
बेमतलब उलझन जीते हैं।
बात दुनिया ने कागजी कर ली,
और अहसास में कमी कर ली।
तुममे सुनने का सब्र जब न रहा,
मैंने बातों में ही कमी कर ली।
जिन्दगी में सुकून तब आया,
जब वसीयत में सादगी कर ली।
रात और नींद रोज लड़ते रहे,
और ख्वाबों ने खुदकुशी कर ली।
हर सुबह खुद में खुद को झांक लिया,
इस तरह हमने बंदगी कर ली।
खुद वजह देगा बहाने देगा,
भूल जाने के भी ताने देगा।
रात को ख्वाब हजारों देकर,
नींद आंखों में न आने देगा।
उससे मिलते ही छलक जाता है,
दिल कहां दर्द छुपाने देगा।
मेरी आंखों से है वादा उसका,
आंसुओं को नहीं आने देगा।
वक्त बेदर्द महाजन ठहरा,
कर्ज पूरा न चुकाने देगा।
आह उदासी बेचैनी कोहराम लिखूं,
यादों के मैं आखिर क्या क्या नाम लिखूं।
यादें ढोये, ख्वाब भी पाले धड़के भी,
इक बेचारे दिल कितने काम लिखूं।
उनके लिए कुछ वक्त तलाशा करता हूं,
जिनके लिए दफ्तर की सारी शाम लिखूं।
सुख हो दुख हो मुझमें शामिल रहता है,
इस चाहत का कैसै कोई दाम लिखूं।
वक्त दे दे तू आग के रिश्ते,
हम बना लेंगे राग के रिश्ते।
हर जगह जोड़ना-घटाना बस,
ये गुणा और भाग के रिश्ते।
जब भी एहसास डांटता है उन्हें,
लौट आते हैं भाग के रिश्ते।
रात तन्हा तुझे नहीं छोड़ा,
हम निभाते हैं जाग के रिश्ते।
जिस्म से रूह तक महकते हैं,
दाल-रोटी से साग के रिश्ते।
जब भी एहसास के बादल होंगे,
मेरे जैसे कई पागल होंगे।
एक आंसू भी बहा देगा उन्हें,
जो किसी आंख का काजल होंगे।
ढक ही लेते हैं मुसीबत सारी,
जो दुआओं भरे आंचल होंगे।
सारा माहौल खनकता होगा,
कहीं कंगन कहीं पायल होगें।
साथ हर हाल में होगा उनका,
वो भले आंख से ओझल होगें।
कैसे कह देगा कोई किरदार छोटा पड़ गया,
जब कहानी में लिखा अखबार छोटा पड़ गया,
सादगी का नूर था चेहरे पे उसके इस कदर,
मैने देखा जौहरी बाजार छोटा पड़ गया।
दर्जनों किस्से-कहानी खुद ही चलकर आ गए,
उससे मैं जब भी मिला इतवार छोटा पड़ गया।
इक भरोसा ही मेरा मुझसे सदा लड़ता रहा,
हां ये सच है उससे मैं हर बार छोटा पड़ गया।
उसने तो अहसास के बदले में सबकुछ दे दिया,
फायदे नुकसान का व्यापार छोटा पड़ गया।
मेरे सिर पर हाथ रखकर ले गया सब मुश्किलें,
इक दुआ के सामने हर वार छोटा पड़ गया ।
चाहतों की उंगलियों ने उसका कांधा छू लिया,
सोने, चांदी, मोतियों का हार छोटा पड़ गया।१० -
बचपन की क्या बात छिड़ी है,
हंसते हंसते आंख भरी है।
किस्सों की पतवारें लेकर,
यादों की इक नाव चली है।
बातें तो कितनी बाकी हैं,
अब आंखों पर नींद चढ़ी है।
बारिश में मिट्टी की खुश्बू,
सबकी सांसों तक पहुंचती है।
क्यों न लगे खुश बाग का माली,
पेड़ों की हर शाख हरी है।
क्यों न भरे मन का खालीपन,
उसकी मीठी सी झिड़की है।
उम्मीदों की चिट्ठी लेकर,
दरवाजे पर धूप खड़ी है।११-
याद का बादल लौट आया है,
लो फिर पागल लौट आया है।
वह क्या आया यूं लगता है,
आंख में काजल लौट आया है।
एहसासों की बर्फ जो पिघली,
आंखों में जल लौट आया है।
पास भरोसा था तो जैसे,
दूर गया कल लौट आया है।
सपने जीत के बच्चे आए,
मेहनत का फल लौट आया है।
चहक रहे हैं, फुदक रहे हैं,
घर में जंगल लौट आया है।
सबसे पहले तो ये जुड़ने से मना करता है,
और फिर दिल ही बिछुड़ने से मना करता है।
परों पे अपने भरोसा ही हम नहीं करते,
आसमां कब किसे उड़ने से मना करता है।
काम मुश्किल है बहुत खुद पे हूकूमत करना,
पांव चादर में सिकुड़ने से मना करता है।
घर से निकलो तो बहुत सोच-समझकर निकलो,
वक्त हर शख्स को मुड़ने से मना करता है।
दिल तो देता है दलीलें हमें समझाता है,
दर्द भीतर से निचुड़ने से मना करता है।