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Shamim Shaikh

Abstract

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Shamim Shaikh

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खुश्बू मेरे गाँव की

खुश्बू मेरे गाँव की

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तन मन को छूने वाली 

है खुशबू मेरे गाँव की

हर साँस जीवित करने वाली 

है महक उन फ़िज़ाओं की !

सदियों से बस्ते आए हैं

बच्चे बूढ़े और नौजवान

संघर्ष करते आए है

शिक्षक,व्यापारी,दर्ज़ी,किसान


वर्षा की हो घनघोर घटायें

या ठंडी की हो सर्द हवायें

गर्मी की चिलचिलाती धूप हो

मौसम का कोई भी रूप हो

सहन शक्ति हमारी बढ़ती

हर ऋतु में जीना सिखाती

याद आती है हमको हमेशा 

पीपल के शीतल छाँव की

वो खुश्बू मेरे गाँव की !


वो सुबह सुबह सुनना मुर्गे की बांग 

चहचहाहट अनेक चिड़ियों की,

पेड़ों पर गिलहरियों की छलांग 

बोली कोयल,बुलबुल,पपिहो की

आँधी में जब गिरते पेड़ों से 

जामुन,बेर,आम,बादाम

बच्चे सारे बिनते मज़े से

ज़मीन से या झोला थाम 

हां याद आती है हमें

वर्षा ऋतु में तेज़ हवाओं की

वो खुश्बू मेरे गाँव की !


शहरों में रहने वाले

कभी कभी करते रुख़ देस का

शहरी जीवन को सुखमय कहने वाले

क्या जाने सुख देस का

देस में बिताए कुछ पल

स्मृति-पट पर हो जाते अमर

शहरों में होती चहल-पहल

पर देस में जाता है वक़्त ठहर

हाँ याद है हमें 

वो कच्ची मिट्टी के घरों के पनाहों की

वो खुश्बू मेरे गाँव की !


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