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Shamim Shaikh

Tragedy

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Shamim Shaikh

Tragedy

परिश्रम ही पूजा है

परिश्रम ही पूजा है

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आज सुबह मंदिर पहुँचकर जब

माँ और मैने की पूजा अर्चना

हर दिन जैसे ही अच्छा लगा सब

मंदिर में भजन और कीर्तन सुनना

माँ ने चढ़ाई पूजा की थाली

और प्रार्थना कर हम लौट रहे थे

उतरकर जब सीढ़ियाँ मंदिर वाली

6-7 साल का एक बच्ची सीढ़ियों पर

दिखी बेचते हुए गरमा-गरम मूँग-फली

और चन्द माह का भाई उसका सोता हुआ पड़ा था

उसके कारीब, रात के सन्नाटे में खड़ी वो अकेली

ले जाओ मैया और भैया कुछ मूँग-फली

कहती वो हमसे भोली-भाली मासूम सी कली

20 रुपये के दो पूडिया खरीदे उस गुड़िया से

जो पथराई आँखों से बिना कुछ कहे बोली

मंदिर में तुम चढ़ाते हो रोज पूजा की थाली

पर रह जाती है खाली रोज हमारे अन्न की थाली,

और आधी या खाली ही रहती नन्हे भाई के दूध की प्याली

मन पर बहुत पैना और मार्मिक सा प्रहार हुआ

उस बच्ची की निगाहों से दिल पर ऐसा वार हुआ

क्यूँ हज़ारों लाखों इस दुनिया में बेसहारा और बेघर हैं

नंगे भूखे इन लोगों को दो जून की रोटी भी नही मयस्सर है

ऐसा लगता है अधूरी रोज हमारी प्रार्थना और पूजा अर्चना है

जब तक उस बच्ची जैसे लोगों का जीवन इस कदर सहमा है

दिन रात मेहनत करने वाले ऐसे हज़ारों लाखों मजदूर हैं

धूप, बारिश, ठंड में जो घोर परिश्रम करने को मजबूर हैं

जतन और संघर्ष के सिवा, जीवन में न कोई उपाय दूजा है

हां सच कहा है किसी महा पुरुष ने परिश्रम ही पूजा है।

          

 


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