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Rajdip dineshbhai

Abstract

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Rajdip dineshbhai

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फिर तो चांद की चांदनी भी गई

फिर तो चांद की चांदनी भी गई

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कुछ मंजिल की जिंदगी गई 

कुछ खुद को जानने में गई 

क्या हासिल होगा

कुछ यह चार बाते गई


कुछ दुराचार बने हम 

कुछ अच्छे बनने की कोशिश की गई 

यही होता आ रहा है

एक अनजानी वो रात गई 


कुछ हालचाल पूछे गए 

कुछ बीमारी की वज़ह बताई गई 

काला धागा काला टीका 

अच्छा है मुझे अब यही बात रखी गई 


कुछ यारी निभाने में व्यस्त रहे

कुछ की यारी मे यारी गई 

दिखावा हो रहा है 

उसकी मुझे हर पल reels भेजी गई 


कुछ जूठे कुछ सच्चे बनते रहे 

कुछ यादो मे आंख भर गई 

हसीना थी हसने हंसाने की

मुझे भ्रम हुआ और वो सच कर गई


कुछ मुझे सिखाया गया अनजान रखकर 

कुछ मुझे बुलाने में आंखे रखी गई 

कुछ तुम नहीं समझते कुछ हम नहीं समझते 

इसीलिए यह बाते दोनों की बिगड़ गई


कुछ चेहरे आईने में रखे गए 

कुछ खानदान की खानदानी सिखाई गई 

दो बादलों के बीच की लडाई 

कुछ बिजली बिजली खेली गई


कुछ काले गोरे का भेद हुआ 

कुछ अच्छे बुरे की ख्वाईश रखी गई 

कुछ दिन की तो बात थी 

फिर तो चांद की चांदनी भी गई


बड़े बड़े लोगों की बात थी 

छोटे लोगों की बाते अनसुनी की गई

उससे जब से राबता हुआ है हमारा 

तब से आंखों की तो रोशनी गई


चार दिन के मोहताज़ थे हम 

मोहब्बतें भी थोड़ी कम की गई 

एक इंतजार फिर बना इफ्जकार

फिर उसके पिछे शायरी शायरी गई।


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