मन की महाभारत
मन की महाभारत
मेरे मन में मन का तांडव,
मन में कौरव मन में पांडव।
ज्ञान का कृष्ण सुनाता मन में गीता,
मन का कर्ण अपनी व्यथा में जीता।
कुंती का पश्चाताप,
द्रौपदी का विलाप।
मेरे मन के काले अंधेरे,
मेरे मन के उजले सवेरे।
मन के चक्रव्यूह भी बड़े अनोखे,
मन का अभिमन्यु भी खाता धोखे।
मन के भ्रम, मन के नियम
मन के सम, मन के विषम।
हरसू होता युद्ध का शोर,
कहां जाऊं इस रण को छोड़।
इस द्वंद्व में हो जाती कई बार मैं आहत,
मेरे मन में मन की महाभारत।