हर आदमी फिर जीते जी रोज-रोज थोड़ा मरता है ! हर आदमी फिर जीते जी रोज-रोज थोड़ा मरता है !
आहत की आवाज़। आहत की आवाज़।
पीछे पलट के ज़िन्दगी को देखा है बार बार यादों के पार्सल आते रहते है बारम्बार पीछे पलट के ज़िन्दगी को देखा है बार बार यादों के पार्सल आते रहते है बारम्बार
आज आशा भरी नजरों से हमारी तरफ देख रहा है आज आशा भरी नजरों से हमारी तरफ देख रहा है
मायूसी की शुष्क धरा पर, प्रेम-सुधा बरसाते हैं। तेरी चाहत के.. मायूसी की शुष्क धरा पर, प्रेम-सुधा बरसाते हैं। तेरी चाहत के..
मेरी हर उस भावना की तुमने हत्या की। मेरी हर उस भावना की तुमने हत्या की।