बात साथ चलने की थी
बात साथ चलने की थी


बात साथ चलने की थी
वरना कदमों की आहट भी नहीं होती
बात दिलों की लय मिलाने की थी
वरना धड़कने अपने दिल की हर वक़्त सुनी
पीछे पलट के ज़िन्दगी को देखा है बार बार
यादों के पार्सल आते रहते है बारम्बार
बात कुछ ख़ास ख़ज़ाने संजोने की थी
वरना खुद को याद है रोज़ का कारोबार
आँखों के पर्दे पे तस्वीरे करती है कब्ज़ा
जब दोस्त किसी मोड़ पे सुनाते हैं फलसफा
बात उनकी आँखों से खुद को देखने की थी
वरना आईनों की कमी हमारे जहाँ में नहीं
वैसे तो कितने ही रास्ते नापे
पर खामोश से आगाज़ ही टकराये
आख़िरकार, बात साथ चलने की ही थी
ज़िन्दगी के लम्बे सफर में वरना...
क़दमों की आहट भी नहीं होती