Ritu Sama

Romance

5.0  

Ritu Sama

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मौसम की साज़िश

मौसम की साज़िश

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बारिश की रुमझुम सी लय

लाती है याद तुम्हारी क्यों प्रिय

क्यों बादल के गरजन में लगे

थामूं हाथ तुम्हारा, तुम्हारा ही 

निस्संदेह


गीली मिट्टी की सौंधी सी महक

और हवा से खेलती हुई सर्द सी 

दोपहर

क्यों मीठी सी शर्माती धूप

मेरे आँगन में ढूंढे तुम्हारा ही रूप


मौसम को कैसे ये पता

मेरे मन में तुम्हारा प्रेम है कहाँ 

छिपा

तार कुछ पुराने क्यों ये छेड़ता

मेरे सर का ये आसमान बांवरा


क्यूं है इसे तलब तुम्हारी

मुझसे भी कहीं ज़्यादा

जैसे प्रेम का कोई क़िस्सा 

तुम्हारे साथ

बुना हो इसने भी पौना आधा


साज़िश है ये इन सबकी 

कि आखिर बुला लूँ तुम्हें आंगन 

में अपने

बातें हमारे स्नेह की मुकम्मिल 

हो या नहीं

इस आसमान को तुम्हारा दीदार

तो मिले


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