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निखिल कुमार अंजान

Abstract

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निखिल कुमार अंजान

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मेरा खुदा मिल जाए

मेरा खुदा मिल जाए

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मुझको गर मेरा खुदा मिल जाए

शायद इस दर्द की दवा मिल जाए

किए जो जफ़ा मैंने इस जन्म

शायद उनका सिला मिल जाए।


मांगता हूँ तुझसे क्या भला ऐ खुदा

मुझको मेरी सही सही सजा मिल जाए

नजर तेरी गर हो जो मुझ पर फिर चाहे

कुछ मिले न मिले तेरी पनाह मिल जाए।


करना था जो भी वो सब कर चुके हैं

ए खुदा बस अब तेरी दुआ मिल जाए

मुनासिब जो भी समझे ख़ातिर मेरी

उसको बस सही दिशा मिल जाए।


अंजान को यूँही अंजान न समझना

बस मुझको तेरा पता मिल जाए

चाहे कुछ मिले या न मिले जहाँ में

मुझको बस मेरा खुदा मिल जाए।


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